प्रयागराज, 27 सितंबर : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अमेरिका में सिख समुदाय पर दिए गए बयान के मामले में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को राहत देने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति समीर जैन की एकल पीठ ने वाराणसी स्थित एमपी/एमएलए विशेष अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली उनकी आपराधिक समीक्षा याचिका खारिज कर दी। पीठ ने 3 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सितंबर 2024 में अमेरिका यात्रा के दौरान राहुल ने कथित तौर पर कहा था, ‘भारत में सिखों के लिए माहौल ठीक नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया था कि क्या सिख पगड़ी बांध सकते हैं? क्या वे कड़ा पहन सकते हैं और क्या वे गुरुद्वारे जा सकते हैं?’ इस बयान को समाज में भड़काऊ और विभाजनकारी बताते हुए नागेश्वर मिश्रा ने वाराणसी के सारनाथ थाने में राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। एफआईआर दर्ज न होने पर उन्होंने न्यायिक मजिस्ट्रेट (द्वितीय) के समक्ष अर्जी दाखिल की।
केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना अर्जी सुनवाई योग्य नहीं
नागेश्वर की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना अर्जी सुनवाई योग्य नहीं है। न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ विशेष सत्र न्यायालय/एमपी-एमएलए विशेष न्यायालय में पुनर्विचार अर्जी दाखिल की गई। विशेष सत्र न्यायालय ने अर्जी को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही मामले को नए सिरे से विचार करने और आदेश पारित करने के लिए वापस भेज दिया। राहुल गांधी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सरूप चतुर्वेदी ने कहा कि आरोप निराधार हैं। इसी तरह, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एजी मनीष गोयल ने कहा था कि विशेष अदालत ने अर्जी पर गुण-दोष के आधार पर फैसला करने के लिए मामला मजिस्ट्रेट के पास वापस कर दिया है। अभी कोई एफआईआर नहीं हुई है। सत्र न्यायालय से रिकॉर्ड मंगवाकर आदेश की वैधता पर विचार करने का अधिकार है।
पुनर्विचार अदालत मजिस्ट्रेट के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकती, इसलिए मजिस्ट्रेट अपने विवेक के अनुसार अर्जी पर फैसला ले सकते हैं, इसमें कोई असंवैधानिकता नहीं है। बयान भले ही देश के बाहर दिया गया हो, लेकिन राहुल संसद में विपक्ष की आवाज हैं। शिकायतकर्ता के वकील सत्येंद्र कुमार त्रिपाठी ने कहा था कि बयान एक समुदाय को भड़काने वाला है।
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