नई दिल्ली, 27 नवंबर : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस ‘‘खतरनाक प्रवृत्ति’’ पर प्रकाश डाला, जिसमें असफल या टूटे हुए रिश्तों को बलात्कार जैसे अपराध का रंग दिया जा रहा है। न्यायालय ने कहा कि इस संबंध में आपराधिक न्याय तंत्र का दुरुपयोग चिंता का विषय है और इसकी निंदा की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने एक कथित बलात्कार मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि हर बिगड़ते रिश्ते को बलात्कार के अपराध में बदलना न केवल अपराध की गंभीरता को कम करता है, बल्कि आरोपी पर एक अमिट कलंक और घोर अन्याय भी थोपता है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि बलात्कार, सबसे गंभीर अपराध होने के कारण, केवल उन्हीं मामलों में लागू किया जाना चाहिए जहाँ वास्तविक यौन हिंसा, जबरदस्ती या स्वतंत्र सहमति का अभाव हो।
कानूनी दृष्टिकोण से सहमति की परिभाषा को नया रूप
पीठ ने कहा कि कामकाजी रिश्ते के दौरान शारीरिक अंतरंगता को केवल इसलिए बलात्कार का मामला नहीं कहा जा सकता क्योंकि विवाह में रिश्ता विफल हो गया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि कानून को उन वास्तविक मामलों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए जहां विश्वास का उल्लंघन और सम्मान का हनन हुआ हो। न्यायालय ने कहा, “इस न्यायालय ने कई अवसरों पर उस परेशान करने वाली प्रवृत्ति पर ध्यान दिया है, जहां असफल या टूटे हुए रिश्तों को अपराध का रंग दे दिया जाता है।”
शीर्ष अदालत ने औरंगाबाद में बॉम्बे उच्च न्यायालय के मार्च 2025 के आदेश को चुनौती देने वाले एक व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसने छत्रपति संभाजीनगर शहर में अगस्त 2024 में दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द करने की मांग वाली उसकी अर्जी को खारिज कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मामले में बलात्कार का आरोप पूरी तरह से शिकायतकर्ता के इस दावे पर निर्भर करता है कि व्यक्ति ने शादी का झूठा झांसा देकर उसके साथ यौन संबंध बनाए।
अंतरंगता के अधिकारों की सुरक्षा को मजबूत
“हमारा मानना है कि मौजूदा मामला ऐसा नहीं है जहाँ अपीलकर्ता (पुरुष) ने प्रतिवादी संख्या 2 (महिला) को सिर्फ़ शारीरिक सुख के लिए बहकाया और फिर गायब हो गया। यह रिश्ता तीन साल तक चला, जो काफ़ी लंबा समय है,” अदालत ने कहा। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में, कामकाजी रिश्ते के दौरान शारीरिक अंतरंगता को बलात्कार के अपराध के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है, सिर्फ इसलिए कि रिश्ता विवाह में परिणत नहीं हो पाया।
न्यायालय ने कहा कि न्यायालय सामाजिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखता है, जहां हमारे जैसे देश में विवाह संस्था का गहरा सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है।
पीठ ने कहा कि कानून को उन वास्तविक मामलों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए जहां विश्वास का उल्लंघन और सम्मान का हनन हुआ हो, अन्यथा पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार के लिए दंड) का संरक्षण वास्तविक पीड़ितों के लिए महज औपचारिकता बनकर रह जाएगा।

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