नई दिल्ली, 8 दिसम्बर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को इस बात पर दुख जताया कि जब राष्ट्रगान वंदे मातरम के 100 साल पूरे हुए, तब संविधान का ‘गला घोंटा’ जा रहा था और देश में आपातकाल लगा हुआ था। लोकसभा में वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर चर्चा की शुरुआत करते हुए मोदी ने कहा, “जब वंदे मातरम के 50 साल पूरे हुए, तब देश औपनिवेशिक शासन के अधीन था, जबकि इसकी 100वीं वर्षगांठ पर देश में आपातकाल लगा हुआ था।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम के मंत्र ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूरे देश को शक्ति और प्रेरणा दी। अंग्रेजों ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया, लेकिन वंदे मातरम चट्टान की तरह खड़ा रहा और एकता की प्रेरणा देता रहा।
वंदे मातरम् गान के बल पर मिली आजादी
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, “हम यहाँ इसलिए बैठे हैं क्योंकि लाखों लोगों ने वंदे मातरम का नारा लगाया और आज़ादी के लिए संघर्ष किया। आज इस सदन में हम सभी के लिए पवित्र वंदे मातरम का स्मरण करना बहुत सम्मान की बात है।” उन्होंने कहा, “इस मंत्र ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को ऊर्जा और प्रेरणा दी तथा साहस और दृढ़ संकल्प का मार्ग दिखाया। आज इस सदन में हम सभी के लिए उस पवित्र वंदे मातरम को याद करना अत्यंत गौरव की बात है।”
उन्होंने कहा, “यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हम वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बन रहे हैं। वंदे मातरम की रचना उस समय हुई थी जब ब्रिटिश शासक अपने राष्ट्रगान ‘गॉड सेव द क्वीन’ को घर-घर पहुँचाने का प्रयास कर रहे थे। वंदे मातरम केवल राजनीतिक स्वतंत्रता का मंत्र नहीं था; यह भारत माता को उपनिवेशवाद के बचे-खुचे अवशेषों से मुक्त कराने का एक पवित्र युद्धघोष था।”
वंदे मातरम् बंकिम दा ने तब लिखा जब भारत को नीचा दिखाया गया
प्रधानमंत्री ने आगे कहा, “बंकिम दा ने वंदे मातरम उस समय लिखा था जब भारत को नीचा दिखाना फैशन बन गया था। अब, 150 साल बाद, वंदे मातरम के उस गौरव को पुनः स्थापित करने का यह एक अच्छा अवसर है जिसने हमें 1947 में आज़ादी दिलाई।”
‘ऐसा कोई भाव गीत नहीं हो सकता जो…’
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘हम देशवासियों को गर्व होना चाहिए कि दुनिया के इतिहास में कहीं पर भी ऐसा कोई काव्य नहीं हो सकता, ऐसा कोई भाव गीत नहीं हो सकता जो सदियों तक एक लक्ष्य के लिए कोटि-कोटि जनों को प्रेरित करता हो… पूरे विश्व को पता होना चाहिए कि गुलामी के कालखंड में भी ऐसे लोग हमारे यहां पैदा होते थे जो इस प्रकार के भावगीत की रचना कर सकते थे, यह विश्व के लिए अजूबा है।’
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