नई दिल्ली, 15 दिसंबर : केंद्र सरकार ने भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली में बड़े बदलाव लाने की दिशा में एक कदम उठाया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को संसद में ‘विकास भारत अधिकक्षण विधेयक 2025’ पेश किया। इस विधेयक का उद्देश्य उच्च शिक्षा के विनियमन, मान्यता और संचालन की वर्तमान प्रणाली में सुधार करना है। सरकार ने विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा है, जहां विचार-विमर्श के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा। इस विधेयक के माध्यम से उच्च शिक्षा के लिए एक विधायी आयोग की स्थापना की जाएगी, जो सर्वोच्च नीति-निर्माण और समन्वय निकाय होगा।
आयोग सरकार को सलाह देगा, भारत को शिक्षा का वैश्विक केंद्र बनाने की दिशा में काम करेगा और भारतीय ज्ञान परंपराओं और भाषाओं को उच्च शिक्षा में एकीकृत करेगा। इस आयोग में एक अध्यक्ष, वरिष्ठ शिक्षाविद, विशेषज्ञ, केंद्र सरकार का एक प्रतिनिधि और एक पूर्णकालिक सदस्य सचिव शामिल होंगे। हितों के टकराव से बचने के लिए तीन स्वतंत्र परिषदें आयोग के अधीन कार्य करेंगी।
तीनों परिषदों की क्या-क्या जिम्मेदारियां होंगी?
नियामक परिषद उच्च शिक्षा की देखरेख करेगी। यह संस्थानों के संचालन, वित्तीय पारदर्शिता, शिकायत निवारण और शिक्षा के व्यवसायीकरण की रोकथाम की निगरानी करेगी।प्रत्यायन परिषद संस्थानों के प्रत्यायन प्रणाली की देखरेख करेगी। यह परिणाम-आधारित मानदंड निर्धारित करेगी, प्रत्यायन एजेंसियों की सूची जारी करेगी और प्रत्यायन संबंधी जानकारी सार्वजनिक करेगी।
किन संस्थानों पर लागू होगा?
यह कानून केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों, डीम्ड विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों जैसे आईआईटी और एनआईटी, कॉलेजों, ऑनलाइन और दूरस्थ शिक्षा संस्थानों और प्रतिष्ठित संस्थानों पर लागू होगा। हालांकि चिकित्सा, कानून, फार्मेसी, नर्सिंग और संबद्ध स्वास्थ्य पाठ्यक्रम सीधे तौर पर इस कानून के दायरे में नहीं आएंगे, लेकिन उन्हें भी नए शैक्षणिक मानकों का पालन करना होगा।
विपक्ष की आपत्ति क्या है?
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक पेश किए जाने का विरोध किया। उनका कहना था कि सांसदों को इतनी बड़ी शिक्षा सुधार नीति का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया। टीएमसी सांसद सौगत राय, कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और सीपीआई (एम) सांसद जॉन ब्रिटास ने केंद्र सरकार पर अत्यधिक केंद्रीकरण का आरोप लगाया और कहा कि शिक्षा एक समकालीन विषय है। कई दलों ने विधेयक को न्यायिक समिति (जेपीसी) के पास भेजने की मांग की, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया।
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