चंडीगढ़,6 जून: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि नियमित पद के लिए चयनित उम्मीदवारों को बिना किसी उचित कारण के अनुबंध के आधार पर नियुक्त करने की प्रक्रिया न केवल मनमानी है, बल्कि यह भेदभावपूर्ण भी है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करती है, जो समानता और अवसर की समानता की गारंटी देते हैं। न्यायमूर्ति विनोद एस भारद्वाज ने इस मामले में पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय और एक अन्य याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वे तुरंत और बिना किसी देरी के नियमित आधार पर नियुक्ति का लाभ प्रदान करें।
इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकारी और शैक्षणिक संस्थानों में नियुक्तियों की प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय का पालन होना आवश्यक है। अनुबंध के आधार पर नियुक्तियों की प्रथा से न केवल चयनित उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन होता है, बल्कि यह अन्य योग्य उम्मीदवारों के लिए भी अवसरों को सीमित करती है। न्यायालय का यह आदेश न केवल संबंधित संस्थानों के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश है, बल्कि यह भविष्य में समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को बनाए रखने में भी सहायक होगा।
न्यायमूर्ति भारद्वाज अधिवक्ता शर्मिला शर्मा के माध्यम से याचिकाकर्ता अजीत पाल सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। याचिका में कहा गया है कि वह वरिष्ठ तकनीकी सहायक के पद के लिए नियमित भर्ती प्रक्रिया से गुजरा था, लेकिन उसकी नियुक्ति संविदा सेवा के माध्यम से की गई थी जो मनमाना है।
दूसरी ओर, विश्वविद्यालय ने अन्य बातों के अलावा यह तर्क दिया था कि याचिकाकर्ता बिना किसी विरोध के और बाद में नवीनीकरण से पहले प्रत्येक संविदा अवधि की समाप्ति पर सेवा में विराम के साथ संविदा के आधार पर सेवा करना जारी रखता है।

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