तेहरान, 23 जून : ईरान की संसद ने अपने तीन परमाणु स्थलों पर अमेरिकी हमलों के बाद रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होर्मुज स्टरेटको बंद करने की मंजूरी दे दी है, ईरानी सरकारी मीडिया ने रविवार को यह जानकारी दी। ईरानी संसद की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सदस्य मेजर जनरल कोवसारी ने कहा कि ईरान के शीर्ष सुरक्षा प्राधिकरण, सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के लिए इस निर्णय को अंतिम रूप देना आवश्यक था।
होर्मुज स्टरेट का अंतर्राष्ट्रीय महत्व
यह एक संकरा जलमार्ग है जो फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है, ईरान और ओमान/यूएई के उत्तरी तट के दक्षिण में। यह लगभग 167 किमी लंबा है और अपने सबसे संकरे बिंदु पर केवल 33 किमी चौड़ा है। यह तेल टैंकरों के लिए मुख्य मार्ग है। दुनिया का लगभग 20-30त्न कच्चा तेल और 1/3 रुक्कत्र यहीं से होकर गुजरता है। ओपेक देशों (सऊदी, यूएई, कुवैत, ईरान, इराक) के लिए यह उनका मुख्य निर्यात मार्ग है।
इस रास्ते को बंद कर देने से तेल आपूर्ति में गिरावट होगी, वैश्विक स्तर पर बड़ा संकट। तेल की कीमतों में तेजी से वृद्धि होगी, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुद्रास्फीति। वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और व्यापार और उद्योग प्रभावित होंगे।
भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
भारत दुनियां का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और चौथा सबसे बड़ा गैस खरीदार है। इसके ज़्यादातर संसाधन रूट पर निर्भर हैं, जिनमें से होर्मुज अहम है। नेता हरदीप सिंह पुरी ने भरोसा दिलाया है कि भारत ने आपूर्ति में विविधता लाई है और 100 प्रतिशत आपूर्ति होर्मुज से नहीं आती है। उन्होंने कहा है कि भारत के पास कई हफ्तों का तेल और गैस स्टॉक बचा हुआ है और ज़रूरत पडऩे पर वैकल्पिक रूट से आपूर्ति की जाएगी।
वैकल्पिक व्यवस्था
यूएई और सऊदी अरब जैसे देश पाइपलाइन के जरिए होर्मुज को बायपास करना चाहते हैं। अमेरिका के अनुसार, यूएई और सऊदी अरब में होर्मुज को बायपास करके लगभग 2.6 मिलियन बैरल/दिन की पाइपलाइन क्षमता उपलब्ध है। लेकिन कानूनी तौर पर ईरान स्टरेट को अवरुद्ध नहीं कर सकता। अगर वह ऐसा करता है, तो उसे अमेरिकी नौसेना और गठबंधन का सामना करना पड़ेगा।
इस कदम का तेहरान पर असर पड़ेगा, क्योंकि उसका अपना निर्यात होर्मुज स्टरेट पर निर्भर करता है। ईरान के तेल का एक बड़ा खरीदार चीन नाराज होगा। चीन ने पहले भी इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का विरोध किया है।
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