October 6, 2025

एससीओ बैठक में भारत का कड़ा संदेश, कहां आतंकवाद किसी के पक्ष में नहीं

एससीओ बैठक में भारत का कड़ा संदेश...

शंघाई, 27 जून : रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीन के प्रभुत्व वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में इस बात पर अड़े रहे कि अगर आतंकवाद के मामले में दोहरे मापदंड के सबूत दिए गए और संयुक्त बयान में पहलगाम हमले का जिक्र नहीं हुआ तो भारत इस पर राजी नहीं होगा। इसका नतीजा यह हुआ कि संयुक्त बयान जारी नहीं हो सका। यह भारत की जीत भी है और चीन और पाकिस्तान समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सीधा और कड़ा संदेश भी है कि नया भारत अपने हितों से समझौता करने को तैयार नहीं है। आतंकवाद किसी भी देश के पक्ष में नहीं होता।

आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों की निंदा जरूरी

संयुक्त बयान जारी न होने से पाकिस्तान और चीन की मंशा भी फिर उजागर हो गई है। चीन को शर्म आनी चाहिए लेकिन उसके सुधरने की संभावना कम ही है। यह सच है कि उसने पहले भी आतंकवाद के प्रति नरमी दिखाई है। उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान के आतंकी नेताओं का बचाव किया है। इससे उसकी बदनामी भी हुई लेकिन इसका उस पर कोई असर नहीं पड़ा। यह भी अच्छा हुआ कि रक्षा मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि एससीओ में आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों की निंदा की जानी चाहिए।

संयुक्त ब्यान जारी किए बिना सम्मेलन समाप्त

इसका मतलब यह था कि पाकिस्तान को बख्शा नहीं जाएगा लेकिन चीन ने आशंका के मुताबिक पूरी गुस्ताखी दिखाई। यही कारण है कि एससीओ रक्षा मंत्रियों का सम्मेलन बिना किसी संयुक्त ब्यान के समाप्त हो गया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस पर ध्यान देगा। यह स्पष्ट है कि चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते शरारती तालमेल को देखते हुए भारत को एससीओ में अपनी भूमिका के प्रति सतर्क रहना होगा और चीन में ही होने वाले इस संगठन के शिखर सम्मेलन के लिए अभी से तैयारी करनी होगी।

रूस पर भी नई रणनीति की आवश्यकता

उसे रूस के रवैये का भी पुनर्मूल्यांकन करना होगा, जो यूक्रेन में अपनी संलिप्तता के कारण चीन पर और अधिक निर्भर हो गया है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक तानाशाह हैं। कितना अच्छा हो कि चीन इस हकीकत को समझ ले कि भारत को अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाने के लिए उसकी मदद की जरूरत है, लेकिन उसकी शर्तों पर नहीं। भारत को चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करनी चाहिए और इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियान अपेक्षा के अनुरूप सफल क्यों नहीं हो पाए हैं।

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