October 6, 2025

कारगिल की बर्फीली चोटियों से आज भी वीरों की बहादुरी की गूंज सुनाई देती है

कारगिल की बर्फीली चोटियों से आज...

दीनानगर, 26 जुलाई : आज से 26 साल पहले हुए कारगिल युद्ध को याद करते हुए देशवासी भारतीय सेना की बहादुरी के आगे गर्व से सिर झुका देते हैं, क्योंकि जिन कठिन परिस्थितियों में भारतीय सेना ने यह युद्ध लड़ा था, उसकी मिसाल दुनिया में कहीं और नहीं मिलती। 1999 में पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ छेड़े गए कारगिल युद्ध में जहां देशभर के 527 जवान शहीद हुए थे, वहीं शहीदों की जन्मभूमि गुरदासपुर जिले के 7 जवानों और पठानकोट जिले के एक वीर जवान ने कारगिल की बर्फीली पहाड़ियों पर असाधारण बहादुरी का परिचय देते हुए देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, जिससे उनका नाम शहीदों की श्रेणी में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया।

सूबेदार निर्मल सिंह ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहराकर शहादत का स्वाद चखा

सूबेदार निर्मल सिंह का जन्म 6 मई 1957 को गांव छीना बेट में पिता धन्ना सिंह व माता शांति देवी के घर हुआ था। सरकारी हाई स्कूल तालिबपुर पंडोरी से मैट्रिक करने के बाद वे 21 सितंबर 1976 को सेना की 8 सिख रेजिमेंट में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान उनकी यूनिट वहां भेजी जाने वाली पहली यूनिट थी। 6 जुलाई 1999 को टाइगर हिल फतह करने का आदेश मिला और सूबेदार निर्मल सिंह के नेतृत्व में सेना की टुकड़ी ने एक कठिन चढ़ाई पार करके पाकिस्तानी सेना पर हमला बोल दिया।

सूबेदार निर्मल सिंह ने अपने साथी सैनिकों की जान बचाते हुए पाकिस्तानी सेना के कई सैनिकों को मार गिराया, लेकिन इसी बीच दुश्मन की एक गोली उनके सीने के आर-पार हो गई, जिसके कारण इस वीर योद्धा ने कश्मीर की वादियों में देशवासियों को अंतिम सलामी देते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनकी बहादुरी को देखते हुए देश के तत्कालीन राष्ट्रपति ने उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया।