बीजिंग, 14 अक्तूबर : अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव अब समुद्री व्यापार तक फैल गया है। चीन ने मंगलवार को अमेरिकी जहाजों पर विशेष बंदरगाह शुल्क* लगा दिया और दक्षिण कोरियाई जहाज निर्माता कंपनी हान्वा ओशन की पाँच अमेरिकी इकाइयों के साथ किसी भी तरह के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया। ये दोनों कदम अमेरिकी जहाज निर्माण उद्योग को मज़बूत करने के ट्रंप प्रशासन के प्रयासों का कड़ा जवाब हैं।
चीन के वाणिज्य एवं परिवहन मंत्रालय ने कहा कि ये कदम चीन के जहाज उद्योग और कंपनियों के अधिकारों की रक्षा, अंतर्राष्ट्रीय नौवहन में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए हैं। शुरुआती बंदरगाह शुल्क 400 युआन ($56) प्रति शुद्ध टन होगा और अगले तीन वर्षों में इसमें सालाना वृद्धि होगी।
हनवा महासागर की प्रतिबंधित अमेरिकी इकाइयाँ
हनवा शिपिंग एलएलसी
हनव्हा फिली शिपयार्ड इंक.
हनवा ओशन यूएसए इंटरनेशनल एलएलसी
हनवा शिपिंग होल्डिंग्स एलएलसी
एचएस यूएसए होल्डिंग्स कॉर्पोरेशन
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने अब जहाज निर्माण को हथियार बना लिया है और संकेत दे रहा है कि वह उन तीसरे देश की कंपनियों के खिलाफ भी कार्रवाई करेगा जो अमेरिका को चीन के समुद्री प्रभुत्व का मुकाबला करने में मदद कर रही हैं। दक्षिण कोरिया में हान्वा ओशन के शेयरों में 8 प्रतिशत की गिरावट आई। चीन का यह कदम 14 अक्टूबर से चीनी जहाजों पर लगाए गए अमेरिकी बंदरगाह शुल्क के जवाब में है।
अपनी गलतीयां सुधारे अमेरिका
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसके जवाब में 100 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क और अन्य प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है। चीनी मंत्रालय ने अमेरिका से अपनी गलतियों को सुधारने और व्यापार वार्ता में ईमानदारी दिखाने का आग्रह किया है। मंत्रालय ने ज़ोर देकर कहा, “अमेरिका को बातचीत की आड़ में नए प्रतिबंधात्मक कदम नहीं उठाने चाहिए। चीन से निपटने का यह सही तरीका नहीं है।”
हान्वा ओशन ने पिछले साल अमेरिका में अपने नौसैनिक जहाजों के रखरखाव और मरम्मत के लिए भी ठेके हासिल किए थे। कंपनी ने फिलाडेल्फिया में फिली शिपयार्ड को 10 करोड़ डॉलर में खरीदा और अगस्त में अमेरिकी जहाज निर्माण क्षमता बढ़ाने के लिए 5 अरब डॉलर के निवेश की योजना की घोषणा की। विशेषज्ञों के अनुसार, दोनों कदम शिपिंग और बंदरगाह शुल्क को लेकर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाते हैं और इस बात का संकेत हैं कि समुद्री व्यापार अब व्यापार युद्ध का अगला मोर्चा बन गया है।
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