अमरावती, 17 नवम्बर : मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने रविवार को ज़ोर देकर कहा कि वह अब भी अनुसूचित जातियों (एससी) के आरक्षण में क्रीमी लेयर को शामिल न करने के पक्ष में हैं। उन्होंने कहा कि आरक्षण के मामले में आईएएस अधिकारियों के बच्चों की तुलना गरीब खेतिहर मज़दूरों के बच्चों से नहीं की जा सकती। 2024 में भी उन्होंने कहा था कि राज्यों को एससी और एसटी के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण के लाभों से वंचित करने के लिए एक नीति बनानी चाहिए।
‘भारत के 75 वर्ष और जीवंत भारतीय संविधान’ शीर्षक से आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘मैंने भी आगे आकर कहा कि इंदर साहनी (बनाम भारत संघ एवं अन्य) फैसले के अनुसार, क्रीमी लेयर की अवधारणा को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की तरह अनुसूचित जातियों पर भी लागू किया जाना चाहिए। हालांकि इस मामले पर मेरे फैसले की व्यापक रूप से निंदा की गई है।’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन मेरा अब भी मानना है कि न्यायाधीशों से आमतौर पर अपने फैसलों को बरकरार रखने की उम्मीद नहीं की जाती है और मेरी सेवानिवृत्ति में अभी लगभग एक सप्ताह का समय बचा है।’
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