नई दिल्ली, 14 जून : दिल्ली हाई कोर्ट के उस निर्णय ने, जिसमें सभी जिलों की डिजिटल कोर्ट को सेंट्रल दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया, न केवल वकीलों और वादियों को परेशान किया है, बल्कि न्यायिक अधिकारियों के लिए भी कई चुनौतियां उत्पन्न कर दी हैं।
हाल ही में तीस हजारी कोर्ट में जारी एक आदेश ने इस स्थिति को स्पष्ट रूप से उजागर किया है, जिसमें डिजिटल कोर्ट के जजों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उनका उल्लेख किया गया है। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया की सुगमता को प्रभावित कर रहा है और इससे संबंधित सभी पक्षों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे न्यायिक प्रणाली की कार्यक्षमता पर भी असर पड़ सकता है।
जज क्यों हो रहे परेशान
तीस हजारी की डिजिटल कोर्ट-2 के ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट, फस्र्ट क्लास मयंक अग्रवाल ने 6 जून को पारित एक आदेश में लिखा है कि मामला शिकायतकर्ता के साक्ष्य दर्ज करने के लिए लगा था। हालांकि, यह अदालत राउज एवेन्यू कोर्ट में शिफ्ट हो गई है। प्रैक्टिस निर्देशों के मुताबिक, साक्ष्य तीस हजारी कोर्ट में दर्ज होने हैं। तीस हजारी कोर्ट में आज तक कोई रूम आवंटित नहीं किया गया है।
लिहाजा, इसके लिए मामले को 18 सितंबर तक के लिए स्थगित किया जाता है। यानी तीन महीने बाद। क्या यह वादी या प्रतिवादी के साथ नाइंसाफी नहीं? पिछले दिनों वकीलों ने हाई कोर्ट के इस फैसले का पुरजोर विरोध किया था। एक दिन की हड़ताल भी की। सभी जिला अदालतों के वकील संगठनों की को-ऑर्डिनेशन कमिटी ने दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस विभू बाखरू से मुलाकात कर वकीलों के आक्रोश की वजहें भी उनके सामने रखीं, जिन्होंने इस फैसले की समीक्षा का आश्वासन दिया है।
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