चंडीगढ़, 15 नवम्बर : पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि साइबर धोखाधड़ी केवल दो पक्षों के बीच का व्यक्तिगत विवाद नहीं है, बल्कि डिजिटल अर्थव्यवस्था और जनता के विश्वास पर हमला है। इसलिए, ऐसे मामलों में केवल शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौते के आधार पर प्राथमिकी रद्द नहीं की जा सकती। न्यायमूर्ति सुमित गोयल ने कहा कि साइबर अपराध एक आधुनिक, संगठित और सीमा पार का आर्थिक खतरा है, जो डिजिटल वित्तीय व्यवस्था की जड़ें हिला देता है।
अपराधियों को मिलेगा बढ़ावा
न्यायालय के अनुसार, केवल समझौते के माध्यम से ऐसे संगठित अपराध को समाप्त करना न्यायिक व्यवस्था को ‘व्यवस्थित खतरों को जारी रखने’ की अनुमति देने जैसा होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अपराधी केवल पैसा लौटाकर सजा से बचने लगेंगे, तो दंडात्मक कानून लाभ-हानि में बदल जाएगा। इससे अपराधी समझौतों को ‘पहले से किए गए खर्च’ मानकर निडर होकर अपराधों को दोहराएंगे।
अकाउंटेंट ने एफआईआर दर्ज कराई, बाद में हलफनामा दाखिल किया ये टिप्पणियां आईपीसी की धारा 528 के तहत दायर एक याचिका को खारिज करते हुए की गईं, जिसमें समझौते के आधार पर हरियाणा के साइबर पुलिस स्टेशन, सोनीपत में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी। एफआईआर एक निजी फर्म में अकाउंटेंट दिव्या ने दर्ज कराई थी।
14.83 लाख रुपये का अवैध ऑनलाइन लेनदेन किया गया
उसने आरोप लगाया कि उसकी सहमति के बिना उसके एचडीएफसी बैंक खाते से 14.83 लाख रुपये का अवैध ऑनलाइन लेनदेन किया गया। इसके बाद साइबर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की गई। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है और शिकायतकर्ता ने भी एक हलफनामा दायर कर कहा कि उसे एफआईआर रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं है।
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