नई दिल्ली, 21 जुलाई : भारत ने मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी सफलता हासिल की है और अपना पहला स्वदेशी मलेरिया टीका विकसित किया है। यह टीका मलेरिया पैदा करने वाले प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम के खिलाफ प्रभावी पाया गया है और मलेरिया के सामुदायिक संक्रमण को रोकने में कारगर है। आईसीएमआर के भुवनेश्वर स्थित क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र ने इस उन्नत मलेरिया वैक्सीन, एडफाल्सीवैक्स को विकसित किया है।
दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस टीके के व्यावसायिक उत्पादन हेतु प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हेतु पात्र संगठनों, कंपनियों और निर्माताओं से आवेदन आमंत्रित किए हैं। यह दुनियां के सबसे उन्नत मलेरिया-रोधी टीकों में से एक है। इस टीके की खास बात यह है कि यह मलेरिया परजीवी को रक्त में पहुंचने से पहले ही रोक देता है। यह मच्छरों के माध्यम से होने वाले इस सामुदायिक संक्रमण को भी रोकता है।
दहीं पनीर बनाने वाले बैक्टीयरा की ली मदद!
इसे लैक्टोकोकस लैक्टिस नामक बैक्टीरिया की मदद से विकसित किया गया है, जिसका उपयोग आमतौर पर दही और पनीर बनाने में किया जाता है। इस तकनीक का पूर्व-नैदानिक सत्यापन आईसीएमआर-एनआईएमआर (राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान), आईसीएमआर से संबद्ध अन्य संस्थानों और राष्ट्रीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान के सहयोग से किया गया था। प्री-क्लीनिकल चरण में इस टीके का प्रदर्शन प्रभावी रहा है।
टीके से होंगे कई लाभ
प्रीक्लिनिकल डेटा से पता चलता है कि इस टीके में वर्तमान एकल-चरण टीकों की तुलना में कई फायदे हो सकते हैं, जिनमें दो परजीवी चरणों को लक्षित करके सुरक्षा, बेहतर दीर्घकालिक प्रतिरक्षा और नौ महीने से अधिक समय तक कमरे के तापमान पर गतिविधि बनाए रखना शामिल है।
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