नई दिल्ली, 1 अगस्त : भारतीय पौराणिक कथाओं में, शनि देव को मुख्यतः पूजा के लिए नहीं, बल्कि भय के लिए याद किया जाता है। उन्हें धीमी गति, बाधाओं, विलम्ब और कर्म की ऊर्जा से जोड़ा जाता है। कथा के अनुसार, जब शनि देव का जन्म सूरज देव और उनकी पत्नी छाया के यहाँ हुआ, तो उनके प्रथम दर्शन से ही पीड़ा हुई। यहाँ तक कि उनके अपने पिता सूरज देव ने भी उनसे मुँह मोड़ लिया था।
“शापित” भगवान की कहानी या सिर्फ एक मिथक?
एक प्रचलित कथा के अनुसार, जन्म के बाद जब शनिदेव ने पहली बार अपनी आँखें खोलीं, तो उनकी दृष्टि इतनी तेज़ थी कि सूर्य देव मंद पड़ गए और उनकी चमक फीकी पड़ गई। इससे उन्हें एक दैवीय श्राप मिला, जो एक तरह से आकाशीय समुदाय से अलगाव था।
तभी से शनिदेव को कष्ट, भय और दुःख का प्रतीक माना जाता है। यह प्राचीन मान्यता आज भी अंकों की दुनिया, अंक ज्योतिष में देखी जाती है, जहाँ अंक 8 (जिसका स्वामी शनि है) को अशुभ, भारी या खतरनाक माना जाता है। लेकिन क्या यही पूरा सच है? या इसमें कोई गहरा आध्यात्मिक पहलू है जिसे हम अनदेखा कर रहे हैं?
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