चंडीगढ़: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने ग्रुप-डी कर्मचारियों की उपेक्षा पर कड़ा रुख अपनाते हुए पंजाब सरकार और स्थानीय निकायों को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने साफ कहा कि राज्य और उसके स्थानीय निकाय अपने निम्नतम स्तर के कर्मचारियों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं मानो वे दोयम दर्जे के नागरिक हों। इस टिप्पणी के साथ, अदालत ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़, तीनों प्रशासनों को सेवा मामलों में निरर्थक मुकदमेबाजी बंद करने के निर्देश जारी किए हैं।
अदालत ने 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा कि यह दुखद है कि ग्रुप-डी कर्मचारियों के मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। सुनवाई के दौरान अदालत ने नगरपालिका सहायक दिलबाग सिंह की सेवानिवृत्ति लाभों से संबंधित याचिका स्वीकार कर ली और देरी के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। अदालत ने कहा कि पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य देय राशि जारी नहीं की गई।
दिलबाग सिंह 36 साल से अधिक की सेवा के बाद हेल्पर के पद से सेवानिवृत्त हुए, लेकिन उन्हें केवल अवकाश नकदीकरण और जीपीएफ का एक हिस्सा दिया गया। शेष लाभ केवल इसलिए रोक दिए गए क्योंकि नगर पंचायत ने अपने कानूनी सलाहकार की राय के आधार पर दावा खारिज कर दिया था। जस्टिस बराड़ ने टिप्पणी की कि जिस व्यक्ति ने पूरी जिंदगी कड़ी मेहनत की है, उसे सेवानिवृत्ति के बाद लाभ पाने के लिए दर-दर भटकना न्याय और मानवीय संवेदनाओं के खिलाफ है।
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