नई दिल्ली, 28 अगस्त : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने के फैसले के बाद अब भारत ने एक बड़ा कदम उठाया है। इस फैसले का सीधा असर कपड़ा क्षेत्र पर पड़ता दिख रहा है, लेकिन भारत ने अब अमेरिका पर अपनी निर्भरता खत्म करने का भी फैसला कर लिया है। सरकार अब 40 नए देशों के साथ समझौता करने की योजना पर काम कर रही है ताकि वहाँ भारतीय कपड़ा और परिधान निर्यात बढ़ाया जा सके। इस कदम से न केवल विदेशी व्यापार में हो रहे नुकसान की भरपाई होगी, बल्कि लाखों लोगों की नौकरियाँ बचाने में भी मदद मिलेगी।
ट्रम्प के फैसले का भारत पर क्या असर होगा?
अमेरिका ने भारत के कपड़ा निर्यात पर 50% टैरिफ लगाया है, जिसमें 25% जुर्माने के तौर पर जोड़ा गया है। इसके कारण, भारत से अमेरिका भेजे जाने वाले कपड़े अब बहुत महंगे हो जाएँगे, जिससे वहाँ माँग कम हो जाएगी। भारत के कपड़ा क्षेत्र में लाखों लोग काम करते हैं, जिनकी नौकरियाँ अब खतरे में हैं। परिधान निर्यात संवर्धन परिषद (AEPC) के अनुसार, इस टैरिफ से 48 अरब डॉलर से ज़्यादा का व्यापार घाटा हो सकता है।
अब भारत इन 40 नए देशों को कपड़े बेचने जा रहा है
सरकार ने अमेरिका के विकल्प के रूप में ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोप, खाड़ी देशों और कई अफ्रीकी बाज़ारों में भारतीय वस्त्र उत्पादों के निर्यात की योजना बनाई है। ये देश मिलकर 590 अरब डॉलर मूल्य के वस्त्र और वस्त्र आयात करते हैं। वर्तमान में भारत की इसमें केवल 5-6% हिस्सेदारी है, जिसका अर्थ है कि इसमें विकास की अपार संभावनाएँ हैं। सरकार का लक्ष्य पारंपरिक बाज़ारों के साथ-साथ नई उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भी भारत की उपस्थिति को मज़बूत करना है।
टैरिफ भारतीय कपड़ा उद्योग के लिए सीधा झटका है
एईपीसी के महासचिव मिथलेश्वर ठाकुर के अनुसार, “भारतीय कंपनियाँ पहले से ही 25% टैरिफ को लेकर चिंतित थीं, लेकिन अब अतिरिक्त 25% टैरिफ लगने से हम अमेरिकी बाज़ार से लगभग बाहर हो गए हैं।” भारत ने 2024-25 में अमेरिका को 10.3 अरब डॉलर मूल्य के परिधान निर्यात किए थे। यह सारा व्यापार अब जोखिम में है।
भारत का वस्त्र क्षेत्र: वैश्विक स्थिति और संभावनाएँ
भारत का कपड़ा क्षेत्र 2024-25 में 179 अरब डॉलर का होने का अनुमान है। वैश्विक कपड़ा आयात बाजार में भारत की हिस्सेदारी केवल 4.1% है, जो छठे स्थान पर है। वैश्विक बाजार 800 अरब डॉलर से भी बड़ा है, जिसका अर्थ है कि भारत में अभी भी विकास की काफी गुंजाइश है।
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