मॉस्को, 19 जुलाई : रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष को समाप्त करने में असफल रहे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस स्थिति से परेशान हैं। उनकी इस परेशानी का एक हिस्सा भारत पर निशाना साधना और उसे धमकाना है। व्हाइट हाउस ने एक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इससे पहले, नाटो के महासचिव मार्क रूट ने भी भारत, ब्राजील और चीन को आर्थिक प्रतिबंधों की चेतावनी दी थी।
हालांकि, भारत ने पश्चिमी देशों की धमकियों के प्रति स्पष्ट रुख अपनाया है। उसने अपने पुराने मित्र रूस के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखते हुए, अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी है। पश्चिमी देशों ने पहले भी रूसी तेल पर दबाव बनाने की कोशिश की थी, लेकिन इसका परिणाम उल्टा निकला था।
प्रतिबंधों के बावजूद भारत-रूस का बढ़ा व्यापार
साल 2022 तक भारत अपने कच्चे तेल के आयात के लिए मध्य पूर्व पर काफी हद तक निर्भर था। इसमें रूसी तेल का योगदान 1% से भी कम था। इसी साल फरवरी में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी देशों ने रूसी तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए, जिससे रूस पूर्व की ओर जाने को मजबूर हुआ। ये प्रतिबंध रूसी अर्थव्यस्था को तोड़ने के लिए लगाए गए थे, लेकिन इसके उलट ये आधुनिक इतिहास में सबसे बड़े व्यापारिक बदलावों में से एक का कारण बने। इसके बाद भारत रूसी ऊर्जा का बड़ा आयातक बनकर सामने आया।
पश्चिमी दबाव के आगे नहीं झुका भारत
रशिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2022 में रूस से भारत का तेल आयात केवल 0.2% था, लेकिन दिसम्बर 2024 तक रोसनेफ्ट के साथ 13 अरब डॉलर प्रति वर्ष का ऐतिहासिक 10 वर्षीय समझौता हो चुका था। दीर्घकालिक ऊर्जा संबंधों की मजबूती से भारत-रूस आर्थिक सहयोग की आधारशिला तैयार हुई है। इसने एक बार फिर साबित किया कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर कोई दबाव स्वीकार करता है।
भारत और रूस की दोस्ती
रूसी तेल आयात जून 2025 में रेकॉर्ड ऊंचाई पर पहंच गया और यह इराक, कुवैद, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के संयुक्त आयात को पार कर गया। भारत ने लगभग 40-44 प्रतिशत रूसी तेल आयात किया। जब भी यूरोपीय संघ ने दबाव बनाने की कोशिश की, भारत हमेशा एक कदम आगे रहा। भारत को उसके दोस्त रूस से अलग-थलग करने की पश्चिमी देशों की योजना धराशायी हो गई। जुलाई 2025 में रूस और भारत का द्विपक्षीय व्यापार 68.7 अरब डॉलर के शिखर पर पहुंचना इसकी गवाही देता है।
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