October 7, 2025

आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मेनका गांधी का छलका दर्द

आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर...

नई दिल्ली, 12 अगस्त : एनसीआर में आवारा कुत्तों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि इन कुत्तों को शेल्टर होम में भेजा जाए, ताकि वे सडक़ों पर न दिखाई दें। इसके साथ ही, यदि कोई पशु प्रेमी इस आदेश के खिलाफ आता है, तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। इस फैसले के बाद, पशु अधिकारों की कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की तीखी आलोचना करते हुए इसे आर्थिक दृष्टि से अव्यावहारिक और क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन के लिए हानिकारक बताया है।

3 लाख कुत्तों को रखने के लिए 3000 पाउंड बनाने पड़ेंगे

मेनका गांधी ने बातचीत करते हुए बताया कि दिल्ली में लगभग तीन लाख आवारा कुत्ते हैं, जिन्हें सुरक्षित स्थानों पर भेजने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इन कुत्तों को सडक़ों से हटाने के लिए दिल्ली सरकार को एक हजार या दो हजार शेल्टर होम बनाने की योजना बनानी होगी, क्योंकि एक ही स्थान पर अधिक कुत्तों को रखना संभव नहीं है। इसके लिए सबसे पहले उपयुक्त भूमि की पहचान करनी होगी, और इस प्रक्रिया में लगभग 4 से 5 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। प्रत्येक शेल्टर होम में देखभाल करने वाले, खाना बनाने वाले और चौकीदार की व्यवस्था करनी होगी, ताकि कुत्तों की उचित देखभाल सुनिश्चित की जा सके।

कुत्तों को खिलाने के लिए हर हफ्ते 5 करोड़ रुपये लगेंगे

मेनका ने बताया कि पकड़े गए कुत्तों को खिलाने के लिए हर सप्ताह कम से कम 5 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आएगा और इसके लिए ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता होगी जो जाकर उन्हें भोजन प्रदान कर सकें। उनका यह भी कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश संभवत: गुस्से में और व्यवहारिकता पर ध्यान दिए बिना जारी किया गया है।

उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह मामला बिल्कुल बिना किसी कारण उठाया गया था, जो एक संदिग्ध समाचार पत्र की रिपोर्ट पर आधारित था, जिसमें दावा किया गया था कि कुत्तों ने एक लडक़ी पर हमला किया। उनके माता-पिता के अनुसार, उस लडक़ी की बाद में ‘दुर्भाग्यवश मेनिन्जाइटिस’ के कारण मृत्यु हो गई।

मेनका ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उठाए सवाल

मेनका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर अपनी चिंता व्यक्त की है, यह कहते हुए कि यह निर्णय संभवत: गुस्से में और बिना किसी व्यवहार्यता के विचार किए लिया गया हो सकता है। उन्होंने इस फैसले की वैधता पर भी सवाल उठाया, यह बताते हुए कि एक महीने पहले सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य बेंच ने इसी विषय पर एक ‘संतुलित फैसला’ सुनाया था।

अब, एक महीने बाद, दो सदस्यीय बेंच ने एक नया निर्णय दिया है, जिसमें ‘सबको पकड़ो’ का निर्देश दिया गया है। इस स्थिति में, यह सवाल उठता है कि कौन सा निर्णय सही है। मेनका गांधी का मानना है कि पहला निर्णय अधिक उचित है, क्योंकि यह एक स्थापित और पूर्वनिर्धारित फैसला है, जो न्यायिक प्रक्रिया की स्थिरता को बनाए रखता है।

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