चंडीगढ़, 5 अक्तूबर : पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कैंसर से जंग हार चुके एक सैन्य जवान को विशेष पारिवारिक पेंशन दिए जाने को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि यह बीमारी सैन्य सेवा में लंबे समय तक तनाव और दबाव के कारण हो सकती है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता के कार्मिक नियमों का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि धूम्रपान से होने वाले कैंसर को छोड़कर, सभी कैंसर सैन्य सेवा के कारण माने जाते हैं।
बेटा रेट्रोपेरिटोनियल सार्कोमा से पीड़ित था
न्यायमूर्ति हरसिमरन सिंह सेठी और न्यायमूर्ति विकास सूरी की खंडपीठ ने केंद्र की उस याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (चंडीगढ़) के 2019 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कुमारी सलोनोचा वर्मा को उनके बेटे की मृत्यु की तारीख से विशेष पारिवारिक पेंशन देने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि वर्मा का बेटा रेट्रोपेरिटोनियल सार्कोमा (एक प्रकार का कैंसर) से पीड़ित था और 24 जून, 2009 को उसकी मृत्यु हो गई थी।
वकील ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने पाया कि यह बीमारी न तो सैन्य सेवा के कारण हुई थी और न ही बढ़ी थी। याचिकाकर्ता ने न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द करने की मांग की थी। पिछले महीने अपने आदेश में, अदालत ने उल्लेख किया था कि वर्मा के बेटे को 12 दिसंबर, 2003 को सेना में भर्ती किया गया था और उस समय उसकी चिकित्सकीय जाँच की गई थी और वह हर तरह से स्वस्थ पाया गया था।
धर्मवीर सिंह बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में 2013 के फैसले का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि जब कोई सैनिक भर्ती के समय स्वस्थ पाया जाता है और बाद में उसे यह बीमारी हो जाती है, तो यह माना जा सकता है कि उसकी बीमारी सैन्य सेवा के कारण हुई या बढ़ी।
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