November 21, 2025

बिलों की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति व राज्यपाल पर समय सीमा की पाबंदी नहीं

बिलों की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति व...

नई दिल्ली, 21 नवम्बर : सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति पर कोई समय सीमा नहीं लगाई जा सकती, लेकिन राज्यपालों के पास विधेयकों को ‘हमेशा के लिए’ रोकने का अधिकार नहीं है।

राष्ट्रपति के संदर्भ पर अपने सर्वसम्मत फैसले में, मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि राज्यपालों द्वारा अनिश्चितकालीन विलंब सीमित न्यायिक जाँच के दायरे में आता है। सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग करते हुए विधेयकों को स्वीकृति नहीं दे सकता। फैसले में कहा गया कि दी गई स्वीकृति वस्तुतः एक अलग संवैधानिक प्राधिकारी की भूमिका का अतिक्रमण करने के समान होगी।

न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आते कार्य

अपने 111 पृष्ठों के फैसले में, जिससे संघवाद और राज्य विधेयकों पर राज्यपाल की शक्ति से संबंधित मुद्दों पर एक नई बहस छिड़ने की संभावना है, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्यपालों की उदासीनता न्यायिक जांच को आमंत्रित करेगी। हालाँकि, अनुच्छेद 200 के तहत न्यायालय उनके कार्यों की समीक्षा नहीं कर सकते। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि विधेयकों को स्वीकृति देने, रोकने या आरक्षित रखने के राज्यपालों और राष्ट्रपति के कार्य न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आते हैं।

न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण पर बल देते हुए, पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में ये टिप्पणियाँ कीं। यह फैसला राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए समय सीमा तय करने के मुद्दे पर राष्ट्रपति द्वारा मांगे गए संदर्भ के जवाब में दिया गया था।

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