वाशिंगटन, 1 सितम्बर : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने देश को फिर से महान बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन उनकी नीतियों के कारण अमेरिका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ता जा रहा है। विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अब डॉलर और अमेरिकी ट्रेजरी पर अपनी निर्भरता को कम करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। यह पहली बार है जब 1996 के बाद वैश्विक केंद्रीय बैंकों में सोने की हिस्सेदारी अमेरिकी ट्रेजरी से अधिक हो गई है।
30 साल में पहली बार आई गिरावट
इसके साथ ही, डॉलर की हिस्सेदारी में भी गिरावट देखी गई है। वैश्विक अंतरराष्ट्रीय रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी 2025 की पहली तिमाही में 2 फीसदी घटकर 42 फीसदी पर आ गई है, जो पिछले 30 वर्षों में सबसे कम स्तर है। इस दौरान, सोने की हिस्सेदारी 3 फीसदी बढक़र 24 फीसदी हो गई है, जो लगातार तीसरे वर्ष वृद्धि दर्शाती है। वहीं, यूरो की हिस्सेदारी में कोई परिवर्तन नहीं आया है और यह 15 फीसदी पर स्थिर बनी हुई है।
क्यों हो रहा है यह शिफ्ट?
दुनियां के सेंट्रल बैंकों के रिजर्व में अब डॉलर के बाद सोना सबसे बड़ा एसेट है। यूक्रेन युद्ध के बाद से ही दुनियां भर के देश अपने रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी कम कर रहे हैं और सोने की हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों के डर और अमेरिका के बढ़ते कर्ज के कारण भी लोग डॉलर से किनारा कर रहे हैं। हालांकि ग्लोबल रिजर्व में डॉलर का दबदबा अब भी बना हुआ है।
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