नई दिल्ली, 4 जून : आर्थिक तंगी का सामना कर रहे पाकिस्तान को आतंकवाद और युद्ध के लिए धन कैसे मिल रहा है? यह एक बड़ा सवाल है। जबकि उसकी गलत नीतियों और भारत के साथ खराब संबंधों के कारण उसकी हालत आज के समय में बहुत खस्ता हो चुकी है। इस दौरान भारत जैसे मजबूत देश के साथ भिड़ कर कई बार नुकसान उठा चुका है, और वो कर्ज चुकाने में भी सक्ष्म नहीं है। बावजूद इसके उसे कर्ज क्यों दिया जाता है।
आई.एम.एफ., ए.डी.बी. और वल्र्ड बैंक का हाथ
इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.), एशियाई विकास बैंक (ए.डी.बी.) और वल्र्ड बैंक (वल्र्ड बैंक) का हाथ है। आईएमएफ ने पाकिस्तान को 1.02 अरब डॉलर (लगभग 8400 करोड़ रुपये) की दूसरी किस्त जारी कर दी है। इससे पहले, 9 मई को पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर का कर्ज दिया गया था। यह वित्तीय सहायता एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी प्रोग्राम के तहत प्रदान की गई है। पाकिस्तान की आर्थिक सहायता के लिए विश्व बैंक से लेकर एशियाई विकास बैंक तक कई संस्थाएं सक्रिय हैं।
फंडिंग से आतंकवाद को बढ़ावा अधिक
एडीबी ने पाकिस्तान के लिए 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मंजूरी दी है, जिसका उद्देश्य राजकोषीय स्थिरता को मजबूत करना और सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन में सुधार करना है। वित्त मंत्री के सलाहकार खुर्रम शहजाद ने सोशल मीडिया पर इस पैकेज की पुष्टि करते हुए बताया कि इसमें 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नीति-आधारित ऋण और 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का कार्यक्रम-आधारित गारंटी शामिल है।
आई.एम.एफ में सबसे ज्यादा पैसे देता है अमेरिका
आई.एम.एफ में सबसे बड़ा कोटा देने वाला देश अमेरिका है, जो करीब 83 बिलियन डॉलर (17 प्रतिशत कोटा) देता है। इसके बाद जापान, चीन, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम का नंबर आता है। आई.एम.एफ का एक रूल है, जो देश जितना ज्यादा कोट देगा उसके पास वोटिंग की पावर भी उतनी अधिक होगी। अमेरिका चाहे तो आईएमएफ को पाकिस्तान को पैसे देने पर रोक लगा दे, मगर वो ऐसा करता नहीं है।
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