नई दिल्ली, 27 नवम्बर : समुद्र में अपनी सामरिक क्षमताएँ बढ़ाने की कोशिशों के तहत चीन एक विशाल तैरता हुआ कृत्रिम द्वीप बना रहा है। यह द्वीप परमाणु हमले को भी झेल सकता है। इस परियोजना को समुद्री शक्ति की वैश्विक दौड़ में एक अहम कदम के तौर पर देखा जा रहा है। इससे समुद्र में चीन की ताकत में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। चीनी सरकार से जुड़े शोधकर्ताओं के अनुसार, यह संरचना एक नया विशाल वैज्ञानिक ढाँचा है। इसका वज़न 78 हज़ार टन है और इसे दुनिया का पहला तैरता हुआ कृत्रिम द्वीप कहा जा रहा है ।
परमाणु विस्फोट-रोधी डिज़ाइन
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस द्वीप में एक भविष्योन्मुखी ‘मेटामटेरियल’ सैंडविच पैनल का इस्तेमाल किया गया है जो परमाणु आघात तरंग के विशाल बल को एक ही झटके में बदल सकता है। धातु की नलियों का एक जाल जैसी यह संरचना एक अति-मजबूत स्पंज की तरह व्यवहार करती है। विस्फोट की स्थिति में, एक ही विनाशकारी प्रहार में बिखरने के बजाय, यह पैनल धीरे-धीरे बल को अवशोषित करता है, उसे फैलाता है और नुकसान को कम करता है।
दक्षिण चीन सागर में तैनात किया जाएगा
इस द्वीप को दक्षिण चीन सागर जैसे रणनीतिक स्थानों पर तैनात किया जा सकता है, जहाँ पहले से ही क्षेत्रीय विवाद चल रहे हैं। चीन ने इसे एक नागरिक पहल बताया है, लेकिन इसमें परमाणु विस्फोटों से सुरक्षा के लिए चीनी सैन्य मानक GJB 1060.1-1991 का उल्लेख है। यह चीन के दोहरे उपयोग के इरादे का स्पष्ट संकेत है।
भारत के लिए चिंता
यह परियोजना भारत के लिए चिंता का विषय हो सकती है। सैन्य पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस मोबाइल द्वीप को विवादित जलक्षेत्र में चुपचाप स्थापित किया जा सकता है और फिर तुरंत गायब हो सकता है। यह संचार केंद्र, रसद अड्डा या निगरानी केंद्र के रूप में काम कर सकता है। इसकी क्षमता बिना ईंधन भरे 120 दिनों तक काम करने की है, जो कुछ परमाणु ऊर्जा चालित वाहनों से भी ज़्यादा है। इससे चीन को सुदूर महासागरों तक अद्वितीय पहुँच मिलती है।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह प्लेटफ़ॉर्म अपतटीय ऊर्जा से लेकर गहरे समुद्र के खनिजों तक, नीली अर्थव्यवस्था पर अपना दबदबा बनाने के चीन के दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। 2028 में जब यह चालू हो जाएगा, तो यह विवादित जलक्षेत्र तक दीर्घकालिक पहुँच प्रदान करेगा।
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