नई दिल्ली, 20 नवम्बर : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उन सभी महिलाओं से, जिनके बच्चे या पति नहीं हैं, अपने माता-पिता और ससुराल वालों के बीच संभावित मुकदमेबाजी से बचने के लिए वसीयत बनाने का आग्रह किया। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 का हवाला देते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि उस समय संसद ने भले ही यह मान लिया हो कि महिलाओं के पास अपनी अर्जित संपत्ति नहीं होगी, लेकिन इन दशकों में महिलाओं की प्रगति को कम करके नहीं आंका जा सकता। इस देश में हिंदू महिलाओं सहित महिलाओं की शिक्षा, रोज़गार और उद्यमिता ने उन्हें संपत्ति अर्जित करने के लिए प्रेरित किया है।
परिवारिक मुकद्दमेबाजी से बचने के लिए जरूरी
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि मान लीजिए किसी हिंदू महिला का कोई बेटा, बेटी या पति नहीं है। उसने अपनी वसीयत भी नहीं बनाई है। ऐसे में अगर उसकी मृत्यु के बाद उसकी अपनी अर्जित संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों को नहीं मिलती है, तो यह उन रिश्तेदारों के लिए परेशानी का कारण बन सकती है। हम इस संबंध में कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने यह सुझाव एक महिला वकील द्वारा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा (1) (बी) को चुनौती देने वाली जनहित याचिका का निपटारा करते हुए दिया। अधिनियम के अनुसार, जब किसी हिंदू महिला की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति उसके माता-पिता से पहले उसके पति के उत्तराधिकारियों को मिलती है। वकील सनिधा मेहरा द्वारा दायर याचिका में दलील दी गई थी कि यह प्रावधान मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है। इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए।
यह भी देखें : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को अंग प्रत्यारोपण के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने का निर्देश दिया

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