नई दिल्ली, 26 दिसम्बर : ब्रिटेन में कार्यरत भारतीय मूल के वरिष्ठ डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण कोविड महामारी के बाद भारत के लिए सबसे बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट हर साल और गंभीर होता जाएगा।
सांस की बीमारियों की ‘छिपी हुई सुनामी’
लिवरपूल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. मनीष गौतम और लंदन के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राजे नारायण सहित कई वरिष्ठ चिकित्सकों ने कहा कि सांस से जुड़ी बीमारियों की एक अनदेखी “सुनामी” धीरे-धीरे पनप रही है। इसका भारी खामियाजा आम नागरिकों के साथ-साथ देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को भी भुगतना पड़ेगा।
डॉक्टरों ने बताया कि पिछले एक दशक में हृदय रोगों में हुई बढ़ोतरी को केवल मोटापे से नहीं जोड़ा जा सकता। इसके पीछे शहरी ट्रैफिक, वाहनों और विमानों से निकलने वाला जहरीला धुआं भी एक बड़ा कारण है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी यह attaching स्वीकार कर चुके हैं कि दिल्ली के प्रदूषण में लगभग 40 प्रतिशत योगदान ट्रांसपोर्ट सेक्टर का है।
अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ी
हालांकि सरकार का कहना है कि प्रदूषण और मौतों के बीच सीधा संबंध साबित करने वाला निर्णायक डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार दिसंबर महीने में दिल्ली के अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या में 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। डॉक्टरों ने अपील की है कि सरकार को टीबी जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रमों की तर्ज पर सांस की बीमारियों के लिए भी तुरंत एक “लंग हेल्थ टास्क ग्रुप” बनाना चाहिए, ताकि समय पर जांच और इलाज सुनिश्चित किया जा सके।
लंदन के सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राजे नारायण ने कहा कि वायु प्रदूषण और कई गंभीर बीमारियों के बीच मजबूत वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं। देरी करने से स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा।
प्रदूषण अदृश्य, लेकिन खतरा घातक
बर्मिंघम के कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर डेरेक कोनॉली ने चेतावनी दी कि प्रदूषित शहरों में प्रदूषण दिखता नहीं है, लेकिन यही वजह है कि यह दिल से जुड़ी बीमारियों के लिए और भी ज्यादा घातक साबित होता है। ‘द लैंसेट काउंटडाउन’ की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में PM2.5 प्रदूषण के कारण 17 लाख से अधिक मौतें हुईं। विशेषज्ञों ने एक बार फिर वायु प्रदूषण के व्यापक स्वास्थ्य प्रभावों को उजागर करते हुए तत्काल और ठोस हस्तक्षेप की जरूरत पर जोर दिया है।
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