अमृतसर, 4 अगस्त : 1993 में तरनतारन में हुए फ़र्ज़ी एनकाउंटर मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने 32 साल बाद 5 पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई है। इनमें रिटायर्ड एसएसपी भूपिंदरजीत सिंह और रिटायर्ड डीएसपी दविंदर सिंह भी शामिल हैं। अदालत ने सभी को आईपीसी की धारा 302 और 120-बी के तहत हत्या और आपराधिक साज़िश रचने का दोषी ठहराया है।
पूरा मामला क्या था?
यह मामला 1993 का है, जब दो अलग-अलग पुलिस मुठभेड़ों में सात युवकों को मारा गया दिखाया गया था। इनमें से चार विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के पद पर तैनात थे। 27 जून 1993 को इन युवकों को उनके घरों से उठा लिया गया, अवैध रूप से हिरासत में रखा गया और अमानवीय यातनाएँ दी गईं।
नकली प्रतियोगिताएं
28 जुलाई 1993 को डीएसपी भूपिंदरजीत सिंह के नेतृत्व में दो अलग-अलग थानों (वैरोवाल और सेहराली) में फर्जी मुठभेड़ों की एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें 7 लोगों को फर्जी मुठभेड़ों में मारा जाना दिखाया गया।
32 साल बाद मिला न्याय
मृतक सुखदेव सिंह की विधवा ने बताया कि जब उनके पति की हत्या हुई थी, उस समय वह गर्भवती थीं। उन्होंने कहा कि पति की मौत के बाद उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा और मजदूरी करके अपने बच्चों का पालन-पोषण किया। मृतक चिंदा सिंह की पत्नी नरिंदर कौर ने कहा कि पुलिस उनके पति को घर की छत से उठाकर ले गई थी और फिर उनका शव भी नहीं दिया गया। पीड़ित परिवारों का कहना है कि 32 साल बाद उन्हें न्याय की उम्मीद जगी है। उन्हें खुशी है कि अदालत ने दोषियों को सख्त सजा सुनाई है। अदालत ने दोषी पाए गए 5 पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है।
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