July 8, 2025

भारत-पाकिस्तान सीज़फायर के बाद सोशल मीडिया पर इंदिरा गांधी के चर्चे

भारत-पाकिस्तान सीज़फायर के बाद...

नई दिल्ली, 11 मई : भारत पाकिस्तान के बीच पिछले 4-5 दिनों से चल रहे संघर्ष के बाद जब बीती रात अचानक से सीजफायर की घोषणा हुई तो लोगों ने राहत की सांस ली। ऐसे में चार दिन के भीतर जब सीजफ़़ायर हुआ तो इसकी चर्चा सोशल मीडिया पर भी हो रही है. कांग्रेस, कांग्रेस समर्थक और कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स इस मौक़े पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का ज़िक्र कर रहे हैं.कांग्रेस के आधिकारिक एक्स हैंडल से इंदिरा गांधी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की तस्वीर साझा की गई है।

कांग्रेस ने क्या कहा?

इस तस्वीर के साथ कांग्रेस ने लिखा है, ‘इंदिरा गांधी ने निक्सन से कहा था- हमारी रीढ़ की हड्डी सीधी है, हमारे पास इच्छाशक्ति और संसाधन हैं कि हम हर अत्याचार का सामना कर सकते हैं. वो वक्त चला गया जब कोई देश तीन-चार हज़ार मील दूर बैठकर ये आदेश दे कि भारतीय उसकी मर्जी के हिसाब से चलें।’ कांग्रेस ने ट्वीट में लिखा, ‘ये थी हिम्मत, यही था भारत के लिए डटकर खड़ा होना और देश की गरिमा के साथ कोई समझौता ना करना।’

शिक्षक दिव्यकीर्ति का वीडियो वायरल

कांग्रेस समेत कुछ सोशल मीडिया यूजर्स यूपीएससी कोचिंग से जुड़े शिक्षक विकास दिव्यकीर्ति का एक पुराना वीडियो भी साझा कर रहे हैं। इस वीडियो में विकास दिव्यकीर्ति कहते हैं, एक महिला प्रधानमंत्री बनी और उन्होंने पाकिस्तान के दो हिस्से कर दिए, बाक़ी लोग बोलते रहते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक कर दूंगा। उन्होंने बोला नहीं, दो कर दिए।

1971 और 2025 में बड़ा अंतर है

हालांकि कुछ लोगों का ये भी मानना है कि 1971 और 2025 की तुलना करना सही नहीं है। 1971 में जब पाकिस्तान से युद्ध के बाद बांग्लादेश बना था, तब सोवियत संघ था लेकिन 1991 में इसका विघटन हो गया और फिर रूस बना। रूस के पास वो शक्ति नहीं बची जो सोवियत संघ के पास थी और इसे भारत के लिए भी झटके के रूप में देखा गया। एक तरफ सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया था, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान उस समय परमाणु शक्ति संपन्न देश नहीं था।

इस पर बीजेपी की आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने लिखा, ’1971 का युद्ध पाकिस्तान सेना के आत्मसमर्पण के साथ ख़त्म हुआ था, हालांकि, इसके बाद हुआ शिमला समझौता रूस और अमेरिका दोनों के दबाव में तैयार हुआ था। भारत ने 99 हजार युद्धबंदियों को बिना किसी रणनीतिक लाभ के रिहा कर दिया, न तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को खाली कराने की कोई शर्त रखी गई, न ही सीमा को औपचारिक रूप से तय किया गया. न ही युद्ध या भारत पर थोपे गए शरणार्थी संकट के लिए कोई मुआवजा मांगा गया। उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं।