जागरूक होने का अर्थ है सहजता का मार्ग खोजना। यह बौद्ध दर्शन है। बुद्ध यह नहीं कहते कि यह कार्य सही है और वह गलत है। वे कहते हैं कि जो बुद्धिमानी से किया जाए वह सही है, जो मूर्खता से किया जाए वह गलत है। बुद्ध यह नहीं कहते कि हर कार्य हर परिस्थिति में सही हो सकता है, या हर कार्य हर परिस्थिति में गलत हो सकता है। कभी कोई चीज पुण्यपूर्ण हो सकती है, कभी वही चीज पापपूर्ण भी हो सकती है।
बुद्ध ने इस निर्णय का आधार बताया
आत्मज्ञान, अर्थात् जागरूकता। जो कुछ भी व्यक्ति सचेत रूप से कर सकता है वह पुण्य है, और जो कुछ भी अचेतन रूप से किया जा सकता है वह पाप है। जैसा कि आप पूछते हैं, क्रोध पाप है या पुण्य? इसलिए बुद्ध कहते हैं कि यदि आप जागरूकता के साथ कार्य कर सकें, तो वह पुण्य है। यदि आप क्रोध और पागलपन से ऐसा करते हैं, तो यह पाप है। कभी-कभी जब एक माँ अपने बेटे पर गुस्सा होती है, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि यह कोई पाप है। शायद यह एक आशीर्वाद भी है। शायद क्रोध के बिना बेटा भटक गया होता। लेकिन बुद्ध इतना कहते हैं कि जो भी काम किया जाए, उसे सजगता के साथ किया जाना चाहिए।
गौतम बुद्ध शांति के प्रतीक हैं
बुद्ध कहते हैं कि कठिन चीजों की ओर आकर्षित मत हो क्योंकि उसमें अहंकार जुड़ा होता है। कार्य जितना कठिन होता है, लोग उसे करने के लिए उतने ही अधिक उत्सुक होते हैं, क्योंकि उसे करने में गर्व की भावना होती है। जिस तरह एक साधारण पहाड़ पर चढऩा मज़ेदार नहीं होता, उसी तरह एवरेस्ट पर चढऩा कुछ खास है। बुद्ध कहते हैं कि अभिमान कठिन एवं दुर्गम परिस्थितियों के लिए आतुर रहता है।
इसलिए, जो आसान और आरामदायक है, जो निकट है, उसे हम पीछे छोड़ देते हैं, और जो दूर है, उसकी ओर चले जाते हैं। मनुष्य चाँद तक तो पहुँच गया, लेकिन अपने भीतर नहीं पहुँच सका। बुद्ध कहते हैं कि सहजता पर ध्यान केन्द्रित करो। सरल और सहज जीवन जियें। संत होने का मतलब कठिन और जटिल हो जाना नहीं है; जीवन आसान और सरल है. सत्य स्पष्ट और सरल होगा। आप भी सरल बनिए और अभिमान के आकर्षण में मत उलझिए।
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