जालंधर/चंडीगढ़, 28 दिसम्बर : पंजाब सरकार आगामी आबकारी नीति 2026-27 को लेकर गंभीर मंथन में जुट गई है। इसी कड़ी में पंजाब के आबकारी आयुक्त जतिंदर जोरवाल ने शनिवार को जालंधर, कपूरथला, होशियारपुर और गुरदासपुर जिलों के शराब ठेकेदारों के साथ एक अहम बैठक की। बैठक में ठेकेदारों ने नई नीति को लेकर अपनी प्रमुख मांगें सरकार और आबकारी विभाग के सामने रखीं।ठेकेदारों ने मांग की कि पंजाब में अंग्रेजी शराब की खुली कोटा प्रणाली को समाप्त किया जाए।
उनका कहना है कि इससे बाजार में सप्लाई अत्यधिक बढ़ जाती है, जिससे ठेकेदारों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। उन्होंने सुझाव दिया कि जैसे देसी शराब के कोटे को नियंत्रित किया जाता है, उसी तरह अंग्रेजी शराब के कोटे को भी नियंत्रित किया जाना चाहिए।
अधिक सप्लाई से गिरती हैं कीमतें
ठेकेदारों का कहना है कि ज्यादा सप्लाई के कारण शराब की कीमतों में लगातार उतार-चढ़ाव बना रहता है। प्रतिस्पर्धा के चलते ठेकेदार कम से कम कीमत पर शराब बेचने को मजबूर हो जाते हैं, जिससे बाजार में कीमतें गिरती चली जाती हैं। बैठक में यह मांग भी उठी कि मौजूदा ठेकेदारों को ठेकों के नवीनीकरण का विकल्प दिया जाए, ताकि कारोबार में स्थिरता आए और अनावश्यक प्रतिस्पर्धा से बचा जा सके।
छोटे ठेकेदारों के लिए छोटे ग्रुप बनाने की सलाह
ठेकेदारों ने कहा कि नई नीति बनाते समय छोटे-छोटे ग्रुप बनाए जाएं, ताकि छोटे ठेकेदार भी इस कारोबार में प्रवेश कर सकें। उन्होंने बताया कि फिलहाल करीब 50 करोड़ रुपये तक के बड़े ग्रुप ही सक्रिय हैं, जिससे छोटे व्यापारियों के लिए इस क्षेत्र में आना लगभग असंभव हो गया है।
ग्रुपों की संख्या में आई गिरावट
ठेकेदारों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में जहां 236 ग्रुप थे, वहीं 2025-26 में यह संख्या घटकर 207 रह गई है। इससे साफ है कि ग्रुपों का आकार लगातार बढ़ाया गया है। ठेकेदारों ने सुझाव दिया कि अधिकांश ठेकों का नवीनीकरण किया जाए और शेष ठेकों के लिए लॉटरी सिस्टम के जरिए ड्रॉ निकाला जाए। इससे सरकार की आय बढ़ेगी और छोटे ठेकेदारों को भी मौका मिलेगा।
ठेकेदारों ने कहा कि अतिरिक्त IMFL कोटा तय स्लैब के अनुसार ही जारी किया जाए और प्रत्येक स्लैब तभी लागू हो, जब संबंधित अतिरिक्त लाइसेंस फीस जमा कराई जाए।
नीति में बदलाव न होने पर नुकसान की चेतावनी
ठेकेदारों ने चेतावनी दी कि यदि नीति में जरूरी बदलाव नहीं किए गए, तो खुदरा शराब कारोबार ठप, रोजगार में कमी और सरकार के राजस्व में गिरावट का खतरा पैदा हो सकता है। घटते मार्जिन और अतिरिक्त स्टॉक के कारण कई लाइसेंसधारक समय पर मासिक लाइसेंस फीस जमा करने में असमर्थ हो रहे हैं।
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