वॉशिंगटन, 11 दिसम्बर : आजकल लोग इंटरनेट पर काफी समय बिताते हैं। इन प्लेटफॉर्म्स पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता से निर्मित वीडियो की भरमार है। लोग असली और नकली वीडियो में फर्क नहीं कर पा रहे हैं। यूट्यूब, इंस्टाग्राम और अन्य इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स पर स्क्रॉल करते समय हर उम्र और वर्ग के लोग इन वीडियो को देख रहे हैं। चाहे बच्चे हों, किशोर हों, युवा हों या बुजुर्ग, कोई भी इससे अछूता नहीं है। इससे गलत सूचना और फर्जी खबरों को लेकर चिंता बढ़ गई है। यहां तक कि लोग इन वीडियो को सच मानकर उन पर बहस भी करते नजर आ रहे हैं।
एआई के नए ऐप सोरा के लॉन्च
ओपन एआई के नए ऐप सोरा के लॉन्च के बाद से दो महीनों में ही ऐसे वीडियो की बाढ़ आ गई है। सोरा जैसे ऐप द्वारा बनाए गए वीडियो यह संकेत देते हैं कि इस तरह के टूल से लोगों की सोच को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। इंटरनेट पर प्रसारित हो रहे कई वीडियो मज़ेदार मीम्स या बच्चों और पालतू जानवरों की तस्वीरें हैं, लेकिन कुछ का मकसद ऑनलाइन राजनीतिक बहसों में अक्सर देखी जाने वाली नफरत को भड़काना है।
कंपनियों की ज़िम्मेदारी क्या असली है और क्या नकली
इन वीडियो पर नज़र रखने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि अब कंपनियों की ज़िम्मेदारी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि लोगों को पता चले कि क्या असली है और क्या नकली। तकनीक के खतरों पर ध्यान केंद्रित करने वाले मानवाधिकार समूह विटनेस के कार्यकारी निदेशक सैम ग्रेगरी ने कहा कि कंपनियां गलत और भ्रामक जानकारी को नियंत्रित करने के लिए बेहतर कदम उठा सकती हैं।
सोरा और गूगल के प्रतिद्वंद्वी टूल वीओ दोनों ही अपने द्वारा बनाए गए वीडियो पर वॉटरमार्क लगाते हैं। यूट्यूब के प्रवक्ता जैक मैलोन ने कहा कि दर्शक यह जानने के लिए अधिक पारदर्शिता चाहते हैं कि वे संपादित सामग्री देख रहे हैं या एआई द्वारा बनाई गई सामग्री। गलत इरादे रखने वाले लोग जानते हैं कि नियमों को दरकिनार करना आसान है।

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