पूर्णिया, 8 जुलाई : कहने को तो भारत अब विकसित हो चला है, लेकिन आज भी भारत के दूर दराज के ग्रामीण इलाकों में अशिक्षा और अज्ञानता का अभाव देखने को मिलता है जो सरकारों द्वारा घोषित विकसित भारत की छवी पर सवाल खड़े करता है।
यहां पूर्वी बिहार के पूर्णिया में रविवार देर रात एक खौफनाक वारदात हुई। मुफस्सिल थाना क्षेत्र के आदिवासी बहुल गांव टेटगामा में एक ही परिवार के पांच सदस्यों की पहले पिटाई की गई फिर जिंदा जला दिया गया। शवों को ट्रैक्टर से ले जाया गया। वहां जेसीबी की मदद से शवों को जमीन में गाडक़र सबूत मिटाने की कोशिश की गई।
घटना के बाद पूरा गांव फरार
कट्टर गांव वालों का शिकार होने से बचकर भागे बुजुर्ग महिला के पोते सोनू ने किसी तरह अपनी जान बचाई और पुलिस को घटना की जानकारी दी। सोमवार को पुलिस ने डॉग स्क्वायड की मदद से सभी शवों को बरामद किया। घटना के बाद गांव के सभी लोग फरार हैं, घरों में ताले लगे हैं। इस मामले में एक ओझा समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
एक ही परिवार के पांचों मृतक
मृतकों में विधवा कातो देवी (70), उनका बेटा बाबूलाल ओरांव (50), उनकी पत्नी सीता देवी (40), बाबूलाल का बेटा मंजीत कुमार ओरांव (20) और बहू रानी देवी (18) शामिल हैं। इस घटना में बाबूलाल उरांव का दूसरा पुत्र सोनू कुमार उरांव रात में घर से भाग गया।
आखिर क्यों ओझा के चक्कर में की ग्रामीणों ने हत्या?
सोनू ने पुलिस और लोगों को बताया कि गांव के एक परिवार का बच्चा काफी दिनों से बीमार था। ग्रामीणों को शक था कि उनकी दादी काटो देवी डायन है और उसी ने बच्चे को बीमार किया है। रविवार को बच्चे की तबीयत खराब हो गई। इसके बाद गांव में ओझा-गुणी का काम करने वाले नकुल उरांव ने ग्रामीणों की बैठक बुलाई और करीब 200 ग्रामीणों को वृद्ध महिला के खिलाफ भडक़ा दिया।
एक माह पहले इसी गांव के नरेश महतो के बेटे की मौत हो गई थी. उस समय भी नरेश और ग्रामीणों ने काटो देवी पर आरोप लगाया था। नकुल उरांव के उकसाने पर ग्रामीण आक्रोशित हो गए और काटो देवी के घर पर हमला कर दिया और पांच लोगों को अगवा कर दूसरी जगह ले गए। इसके बाद पांचों को मारपीट कर जिंदा जला दिया।

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