चंडीगढ़, 30 अप्रैल : भारत की तरह पंजाब के लोगों की भी कनाडा के चुनाव नतीजों पर कड़ी नजर रहती है, क्योंकि वहां बड़ी संख्या में लोग रहते हैं। तो क्या चुनाव नतीजों का पंजाब पर कोई असर पड़ेगा? क्या कनाडा में न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी की करारी हार और उसके नेता जगमीत सिंह की हार पंजाब के उन चरमपंथियों के लिए सबक नहीं है जो पिछले काफी समय से पंजाब में इसी तरह की राजनीति को हवा देते रहे हैं? बर्नबाई सेंट्रल में जगमीत सिंह की हार और उसके बाद एनडीपी नेता के रूप में उनके इस्तीफे को पंजाब में महत्वपूर्ण घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है।
खालिस्तानी समर्थक होना जगमीत सिंह की छवि
यहां जगमीत सिंह को खालिस्तान समर्थक के तौर पर देखा जाता है. उनकी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने पिछली बार 25 सीटें जीती थीं और इन्हीं 25 सीटों के समर्थन से लिबरल पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो प्रधानमंत्री बने थे। जगमीत सिंह अक्सर खालिस्तानियों का समर्थन करते नजर आते थे और चूंकि जस्टिन ट्रूडो की सरकार उनकी पार्टी के समर्थन से चल रही थी, इसलिए वे चाहकर भी भारत की अपेक्षाओं के अनुरूप फैसले नहीं ले सकते थे।
खासकर जब हरदीप सिंह निज्जर की मौत का मामला प्रकाश में आया तो जस्टिन ट्रूडो ने भारत के साथ सीधे टकराव का जोखिम उठाया। इस चक्कर में वहां भी उनकी छवि खराब हुई और उन्हें इस्तीफा तक देना पड़ा। उनकी हार से एक और बात स्पष्ट हो गई कट्टरता लंबे समय तक नहीं चलती।
लोगों को समझना होगा कट्टड़ता ज्यादा देर नहीं चलती
ये चुनाव पंजाब के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव में अमृतपाल सिंह सरबजीत सिंह खालसा जैसे नेताओं की सफलता को देखते हुए ऐसा लगता है कि आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव में ऐसी ताकतें पैर नहीं जमा पाएंगी। यह बात इसलिए और भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टी इस समय पूरी तरह हाशिए पर है।
लोकसभा चुनाव में उनके 13 में से 11 लोगों की जमानत जब्त हो गई। ऐसे में यह डर आज भी कायम है कि कहीं पंथिक वोट बैंक अमृतपाल जैसे लोगों के पीछे न चला जाए। यद्यपि कनाडा के चुनाव परिणाम यह दर्शाते हैं कि कट्टरता अधिक समय तक नहीं चलती, लेकिन क्या पंजाब के मतदाता भी यह बात समझेंगे?
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