नई दिल्ली, 17 मार्च : सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से उत्तर मांगा है, जिसमें यह अनुरोध किया गया है कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की नियुक्ति की प्रक्रिया को केवल कार्यपालिका और प्रधानमंत्री के अधिकार क्षेत्र में सीमित करने की वर्तमान व्यवस्था को संविधान के खिलाफ घोषित किया जाए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस याचिका पर नोटिस जारी करते हुए इसे इसी विषय पर पहले से लंबित एक मामले के साथ जोड़ दिया है।
याचिका में भाजपा पर हैं आरोप
इस जनहित याचिका को गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने दायर किया है, जिसमें अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने संगठन की स्वतंत्रता के मुद्दे को उठाया। उन्होंने यह आरोप लगाया कि कुछ राज्यों, जैसे महाराष्ट्र, जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, वहां कैग द्वारा ऑडिट कार्यों को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। यह स्थिति न केवल पारदर्शिता को प्रभावित करती है, बल्कि सरकारी कार्यों की जवाबदेही को भी कमजोर करती है।
याचिका में न्यायालय से यह अनुरोध किया गया है कि कैग की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष हो।
इस मामले की सुनवाई से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहा है और यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह प्रक्रिया में आवश्यक परिवर्तन लाने के लिए कदम उठाएगा। इस प्रकार के मामलों में न्यायालय की भूमिका लोकतंत्र की मजबूती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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