अमृतसर, 27 मार्च : पंजाब मानवाधिकार संगठन ने पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के खिलाफ लगे आरोपों की जांच कर इस संबंध में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष को रिपोर्ट भेज दी है। जांच रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को साजिश के तहत दोषी ठहराया गया। संगठन ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से अपील की है कि इस मामले की गहनता से जांच होनी चाहिए और इसकी जांच न्यायाधीश से कराई जानी चाहिए।
यह जांच रिपोर्ट पंजाब मानवाधिकार संगठन के मुख्य जांचकर्ता सरबजीत सिंह वेरका, चन्नण सिंह और तजिंदर सिंह के नाम से तैयार की गई है। यह जांच रिपोर्ट शिरोमणि कमेटी के अध्यक्ष राजविंदर सिंह बैंस को भेज दी गई है। छह पृष्ठों की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि एसजीपीसी की आंतरिक समिति के सदस्य और चार अन्य सदस्यों ने संगठन से मामले की जांच करने की अपील की थी। संगठन द्वारा की गई जांच के दौरान तथ्य सामने आए हैं कि पूर्व जत्थेदार के खिलाफ आरोपों की जांच में पुलिस, अदालत और शिरोमणि कमेटी के रिकॉर्ड को नजरअंदाज किया गया है। सोशल मीडिया पर पूर्व जत्थेदार का चरित्र हनन एक गंभीर मामला है और इसकी गहन जांच की आवश्यकता है।
मुख्य जांचकर्ता ने बताया कि पूर्व जत्थेदार के खिलाफ आरोप उनके एक रिश्तेदार गुरप्रीत सिंह ने लगाए थे। इस सम्बन्ध में आरोपों की प्रति शिरोमणि कमेटी से प्राप्त कर ली गई है तथा इस मामले में पुलिस, अदालत और शिरोमणि कमेटी के रिकार्ड भी प्राप्त कर लिए गए हैं। इसके अलावा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा गठित जांच कमेटी की रिपोर्ट के सारांश की प्रति भी प्राप्त की गई।
उन्होंने दावा किया कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा गठित जांच कमेटी की जांच एकतरफा थी और पूर्व जत्थेदार को दोषी साबित करने के लिए अदालती रिकॉर्ड को भी नजरअंदाज किया गया। उन्होंने दावा किया कि इस मामले में 2007 में एक शिकायत के आधार पर शिरोमणि समिति द्वारा की गई जांच और उसकी रिपोर्ट से संबंधित फाइल भी गायब है। इसमें आरोप लगाने वाली महिला की शिकायत झूठी पाई गई।
जांच रिपोर्ट में दावा
जांच रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आरोपी गुरप्रीत सिंह और उसकी पत्नी के बीच पारिवारिक विवाद था। इस संबंध में अदालत में मामला भी दायर किया गया तथा पुलिस में भी मामला दर्ज कराया गया। उन्होंने कहा कि दोनों का 2016 में तलाक हो गया था और तब तक पूर्व जत्थेदार के खिलाफ अवैध संबंधों को लेकर कभी कोई उंगली नहीं उठाई गई। उन्होंने कहा कि यदि 2007 में ज्ञानी हरप्रीत सिंह के खिलाफ आरोप सिद्ध हो गए होते तो उसके बाद तख्त श्री दमदमा साहिब के हेड ग्रंथी, जत्थेदार और श्री अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार के रूप में उनकी नियुक्ति संभव नहीं होती।
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