नई दिल्ली। बार-बार नौकरी बदलने वाले कर्मचारियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि नियोक्ता अपने कर्मचारियों पर सेवा बांड लगा सकते हैं। इस बांड के उल्लंघन की स्थिति में, नियोक्ता उस कर्मचारी से प्रशिक्षण की लागत वसूल सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह अपने फैसले में कहा कि नियोक्ता अब सेवा बांड लागू कर सकते हैं। कंपनियां कर्मचारियों पर न्यूनतम कार्य घंटे लागू कर सकती हैं तथा नौकरी जल्दी छोड़ने वाले कर्मचारियों से प्रशिक्षण शुल्क वसूल सकती हैं। इसे देश के अनुबंध कानून का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
क्या बात है?
विजय बैंक के कर्मचारी प्रशांत नारनवरे को तीन वर्ष की अनिवार्य सेवा पूरी किए बिना नौकरी छोड़ने के लिए 2 लाख रुपये का ‘परिसमापन क्षतिपूर्ति’ (जुर्माना) देने को कहा गया। उन्होंने इसके खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय में अपील की थी। उच्च न्यायालय ने नारनवारे के पक्ष में फैसला सुनाया और उस आदेश पर रोक लगा दी। अब सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई के अपने आदेश में कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फैसले को पलट दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि विजया बैंक के नियुक्ति पत्र में दिया गया सेवा बांड “व्यापार पर रोक” नहीं है, जो कि अनुबंध अधिनियम की धारा 27 के तहत निषिद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अश्विनी दुबे ने कहा कि इस फैसले का निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों पर बड़ा असर पड़ेगा। कर्मचारी अब मनमाने ढंग से नौकरी नहीं बदल सकेंगे। सेवा बांड अब सिर्फ नाम के नहीं रहेंगे।
दुबे ने कहा कि यह फैसला उन कंपनियों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा जो अपने कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर काफी समय और पैसा खर्च करती हैं। विशेषकर आईटी, बैंकिंग और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में, जहां कर्मचारियों की टर्नओवर दरें अधिक हैं, इस निर्णय से कंपनियों को वित्तीय नुकसान से बचाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि यह निर्णय नियोक्ताओं और कर्मचारियों के बीच संतुलन बनाने की दिशा में एक कदम है।
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